6/11/2020

कलम और वाणी की सार्थकता।

बहुत सुंदर,



पेशेवर लोग भले ही बेच दें, अपनी वाणी या भले ही बेच दें अपनी लेखनी किन्तु है तो ये माँ सरस्वती की कृपा।



ये बात सही है किसको पड़ी है आज इस दकियानूसी सोच की लेकिन सत्य और सास्वत यही है कि सरस्वती की कृपा के बगैर शब्दों की प्राण प्रतिष्ठा कठिन ही है। इसका व्यापार और सौदा भी, फलीभूत उसी को होगा अर्थात पूण्य की कमाई भी उसी की होगी जो इंसानियत के सौदे में इनके प्रयोग से, अपने को बचाये रखेगा।



नेता वर्ग ने, जो आज इस संसार की हालत की है, अधिकांश उसके लिए दोषी ही हैं, जो लोगों के हालात की पैरवी करते, वे धीरे-धीरे अस्ताचलगामी होते गए, हांसिये में , निस्तेज पड़े पड़े, अपने भाग्य को, पानी पी पी कर कोसते हैं।



आसान नहीं है, यहां न्याय कर पाना, अपने किरदार से, क्योंकि इम्तहान और परीक्षा, जो पढ़ाई के सांथ खत्म हो जाती है, वो रूप बदल-बदल के, जीवन के संग्राम में, हर पल परीक्षा लेती है, जिसका परिणाम, जीनव के अंतिम चरण के वर्षों में हर बदलते हुए महीने, तारीख व पल-पल के सांथ प्राप्त होता है।



पाठक जी ने, बड़े ही सुंदर शब्दों में सभी को सचेत रहने का आग्रह कर कलम का मान बढ़ाया है।



आभार




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