6/06/2020

Sri Madhav Sadashiv Golvalakar, श्री गुरु जी, RSS के, द्वितीय सर-संघचालक, पुण्यतिथि 05 जून

डॉ० हेडगेवार  जी के पश्चात Madhav Sadashiv Golvalakar, श्री गुरु जी को राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ का, द्वितीय सर-संघचालक बनाया गया

Madhav Sadashiv Golvalakar
Madhav Sadashiv Golvalakar

Sri Madhav Sadashiv Golvalakar, श्री गुरु जी, RSS के, द्वितीय सर-संघचालक, (पुण्यतिथि 05 जून)


संघ की प्रष्ठभूमि:- 

RSS संघ के प्रथम आद्य सर-संघचालक प० पूज्य डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार जी ने अपनी दूरदृष्टि से सर्वकालिक घटनाचक्र को देखते हुए हिंदुओं पर होने वाले जातीयधार्मिक व सांस्कृतिक हमलों से बचाव करने के ऊद्देश्य से, RSS की स्थापना की थी. जैसा की हम सभी जानते व मानते हैं, की इस धरती पर श्रेष्ठ जो धर्म हो सकता हैउस मानव धर्म के प्रतिरूपसनातन धर्म का प्रण-प्राण से, आदि-अनादि काल सेपालन करने वाले देश के लोग, "हिन्दू जीवन पद्यति" के अनुपालन की वजह से ,  प्राणिमात्र में, शिव को ईश्वर (GOD), रूप में देखते हैं. हिंदुओं के इस दैवीय गुण, जो 

"सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामया

सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मां कश्चित् दुखः भागभवेत”.

के सिद्धान्त को जीवन का आधार मानता है. देश देशान्तर की सीमाओं को, शासन-प्रशासन की दृष्ट्री से ही, देखता व मानता है. सारे विश्व को एक कुटुंब के रूप में, स्वीकार करने वाली जीवन पद्यति, का अनुसरण करना, कितना कठिन है, इसका अनुमान, यदि किसी को करना है, तो वह, " हिन्दू जीवन पद्यति" का अध्ययन करे.

हिन्दू जीवन  पद्धति का प्रकृति सम्मत आधार:-

हम यह मानते हैं की ईश्वर के निवास स्थान, हमारे इस तन रुपी मन-मंदिर, के स्वस्थ रहने के लिए, हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता, अच्छी होनी चाहिए. हमारे एंटीबॉडीज, WBC, रोगाणुओं के हमले से, हमारे शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं. ईश्वर ने सृष्टि के हर तंत्र के निर्विघ्न चलते रहने के लिए, हर स्तर पर उपचार तंत्र भी निर्मित किये हैं.

ब्रह्माण्ड व सृष्टि के प्रचालन में, ठीक वैसे ही जैसे हमारे जीवन में ऋतुएं आती हैंयुग आते हैं. पूर्णिमां की रात चांदनी की वजह से, रात्रि होने पर भी, मन में खुशियों की तरंगे, पैदा करती है. इसके विपरीत, अमावस की रात, कमजोर व अस्वस्थ लोगों को कष्ट देने वाली होती है. हमें मालूम है, रात की अवधी अपने निश्चित समय में पूर्ण होगी ही. और फिर से, एक नये दिन का उदय होगा, जो सबको नव-जीवन देगा. इस अवधारणा से, हिन्दू जीवन पद्यति, पोषित व पल्लवित है.

हिन्दुस्थान के कष्ट:- 

कलियुग के प्रभाव से, अधर्म व निकृष्ट सोच की प्रबलता, दुर्जनों के बल को बड़ाने वाली होती है. इसके परिणामस्वरूप, प्रकृति के साहचर्य में, जीवन यापन करने वाले प्राणी-जन, समय-असमय, संकटों से घिर जाते हैं. काल चक्र की गति के सांथ, जैसे-जैसे कलियुग की प्रबलता बड़ी है, वैसे-वैसे संकटों की तीव्रता भी बड़ी है. और जब-जब ऐसा संकट आता है, तब-तब ईश्वर महापुरुषों को, सृष्टि के संतुलन हेतु अवतरित करता है. इसी तरीके से, सृष्टि आदि-अनादि काल से, अपने को नव-सृजित करती रहती है.

माधव सदाशिव गोलवरकर, श्री गुरु जी, का  प्रताप:- 

ईश्वरीय अनुकंम्पा से, हिन्दू धर्मावलंबियों के उत्थान को कृतसंकल्प, राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ (RSS) का उदय तो हो गया, किन्तु आगे की राह आसान न थी. परम पूज्य डॉक्टर जी का असमय देव लोक गमन हो गया था. भारत माता अभी भी बंधनों में ही जकड़ी हुई थी. माँ भारती के रन-बांकुरों ने, आतातायियों के दांत खट्टे कर रखे थे. बस किसी भी क्षण, भारत माता बेड़ियों को तोड़ कर, सिंहासनारूढ़ होने को ही थी. ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में, श्री गुरूजी ने, संघ की बागडोर समहालि थी. 

आपने ईश्वरीय विधान व डाक्टर जी की दूरदृष्टि को, ह्रदयंगम करते हुए, पर्याप्त साधना कर, अर्जित की हुई पात्रता से सर-संघचालक पद का दायित्व ग्रहण कियातत्पश्चात, आपने आजीवन, काल के चक्र की दिशा को, ईश्वरीय आदेशानुसार, इस तरह नियोजित किया की असहाय, मूक-बधिर समाज शनै-शनै पुष्ट होकर आत्मनिर्भर होना आरम्भ हो गया. 

इसके परिणामस्वरूप एक बार पुनः स्वराज का पथ आलोकित हो उठा. आज अनगिनत लोग, जहाँ कहीं भी हिन्दू हैं, उनमे नव ऊर्जा का संचार हुआ है. उनके मन में पुनः, “वसुधेव कुटुम्बकम” के बीज मन्त्र का अंकुरण हुआ है, जो समिष्टि के नव श्रृजन का ईश्वरीय आधार है.

श्रद्धांजलि:-

आज 5 जून को, श्री गुरूजी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य पर, माँ भारती की सभी संताने, एक स्वर में, अपने नमन-वंदन पुण्यात्मा को अर्पित कर रहे हैं.


शत नमन माधव चरण में
शत नमन माधव चरण में ॥धृ॥

आपकी पीयूष वाणीशब्द को भी धन्य करती
आपकी आत्मीयता थीयुगल नयनों से बरसती
और वह निश्छल हंसी जोगूँज उठती थी गगन में ॥१॥

ज्ञान में तो आप ऋषिवरदीखते थे आद्यशंकर
और भोला भाव शिशु साखेलता मुख पर निरन्तर
दीन दुखियों के लिये थीद्रवित करुणाधार मन में ॥२॥

दु:ख सुख निन्दा प्रशंसाआप को सब एक ही थे
दिव्य गीता ज्ञान से युतआप तो स्थितप्रज्ञ ही थे
भरत भू के पुत्र उत्तमआप थे युगपुरुष जन में ॥३॥

सिन्धु सा गम्भीर मानसथाह कब पाई किसी ने
आ गया सम्पर्क में जोधन्यता पाई उसी ने
आप योगेश्वर नये थेछल भरे कुरुक्षेत्र रण में ॥४॥

मेरु गिरि सा मन अडिग थाआपने पाया महात्मन
त्याग कैसा आप का वहतेज साहस शील पावन
मात्र दर्शन भस्म कर देघोर षडरिपु एक क्षण में ॥५॥



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