7/07/2020

हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की traditional life style कैसी थी

हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की परंपरागत जीवन शैली Traditional life style 

सब्जी की खेती, ग्रामीण जीवन शैली
गाँव में सब्जी की पैदावार 
बहुत पुरानी बात नहीं है जीवन में धन का प्रमुख स्थान तो था ही किन्तु धन के लिए लूट मार जैसी स्थितियां नहीं थी. परंपरागत जीवन इतना सरल था की थोड़े से धन में भी गुजर बसर हो जाती थी. बच्चे घर की टाटी पे चढ़ के रसोई के दो तीन महीने का इंतज़ाम आसानी से कर देते थे। कभी खपरैल की छत पे चढ़ी लौकी महीना भर निकाल देती थी। कभी बैसाख में दाल और भात से बनाई सूखी कोहडौड़ी सावन भादो की सब्जी का खर्चा निकाल देती थी‌। अनाज घर भर के खाने के लिए पर्याप्त हो ही जाता था.

ग्रामीण जीवन की खुशहाली :-


उन दिनों सब्जी पर होने वाले खर्चे का पता  तक नहीं चलता था। देशी टमाटर और मूली जाड़े के सीजन में बेहिसाब पैदा होती थी और  खिचड़ी के आते आते उनकी इज्जत घर में घर जमाई जैसी हो जाती थी। तब जीडीपी का अंकगणितीय करिश्मा नहीं था। ये सब्जियाँ सर्वसुलभ और हर रसोई का हिस्सा थीं। लोहे की कढ़ाई में किसी के घर रसेदार सब्जी पके, तो गाँव के दूर दूर तक के घरों में इसकी खुशबू जाती थी। शाम को रेडियो पे चौपाल और आकाशवाणी के सुलझे हुए समाचारों से दिन पूर्ण होता था। रातें बड़ी होती थीं। दूर कहीं कोई हरिया तानपुरे में कोई तान छेड़ देता तो ऐसा लगता मानों कोई सिनेमा चल गया हो । किसान लोगो में कर्ज का फैशन नहीं था।

ग्रामीण जीवन को लगी आधुनिकता की नजर :-


सदियों से ग्रामीण जीवन की खुशहाली की यही परंपरा देश व समाज की जीवन्तता का आधार थी. आधुनिक पाश्चात्य परंपरा के अंधानुकरण के बीच नई पीड़ी के बच्चे बड़े होने लगे.. बच्चियाँ भी बड़ी होने लगी। बच्चे सरकारी नौकरी पाते ही अंग्रेजी इत्र लगाने लगे। बच्चियों के पापा सरकारी दामाद में नारायण का रूप देखने लगे। किसान क्रेडिट कार्ड...... ....डिमांड और ईगो का प्रसाद बन गया। इसी बीच मूँछ बेरोजगारी का सबब बनी।

सामाजिक परिवर्तन:-


फिर एक दौर आया बिना मूछ वाले मूछमुंडे इंजीनियरों का. अब दीवाने किसान अपनी बेटियों के लिए खेत बेचने के लिए तैयार थे। बेटी गाँव से रुखसत हुई.. पापा के कानों को सुख देने वाला रेडियो साजन की टाटा स्काई वाली एलईडी के सामने फीका पड़ चुका था। अब आँगन में हरिया की बहू जो गाँव के सुखी जीवन में रची बसी थी. जो छाने व घर की दीवारों में अंगूर व तरकारी की लताएँ / बेल चढ़ाने में जीवन के कई रंग बिखेरती थी वही बिटिया पिया के ढाई बीएचके की बालकनी के गमले में कोरोटन का पौधा लगाने लगी ताकि घर की नकारात्मकता को समाप्त किया जा सके घर में खुशियाँ आ सकें और इसी जद्दोजहद में सब्जियाँ मंहँगी हो गईं। अब तो बगैर  रूपये खर्चे सब्जी तो दूर, शुद्ध हवा और पानी तक नसीब नहीं होता.

परिणाम / निष्कर्ष:-


इस लॉक डाउन पीरियड में सभी पुरानी यादें ताज़ा हो गई हैं. सच में उस समय सब्जी पर कुछ भी खर्च नहीं हो पाता था। जिसके पास नहीं होता उसका भी काम चल जाता था। दही मठ्ठे की भरमार रहती थी. सबका काम चलता था। मटर, गन्ना, गुड की सबके लिए इफरात रहती थी। इससे भी बड़ी बात तो यह थी कि जीवन में आपसी मनमुटाव रहते हुए भी एक दुसरे के प्रति अगाध प्रेम रहता था। आज की जैसी छुद्र मानसिकता दूर दूर तक नहीं दिखाई देती थी।

हाय रे ये आधुनिक शिक्षा व पश्चिम का अन्धानुकरण कहाँ तक ले आया है हमें ?? जीवन कितना क्रूर हो गया है.

आज हर आदमी एक दूसरे को शंका की निगाह से देख रहा है।

यक्ष प्रश्न यह है कि, क्या सचमुच हम विकसित हुए हैं ? या यह केवल एक छलावा भर है !!


हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की परंपरागत जीवन शैली Traditional life style ही हमें सही अर्थों में जीवनोत्कर्ष प्रेरणा Life Inspiration दे सकती है.


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