7/26/2020

Dainik Shakha ka kya mahatav hota hai ?

दैनिक शाखा की कार्यपद्यति का अपना विशेष महत्त्व होता है. इसमें शारीरिक व्यायाम, समता के प्रदर्शन, खेल कूद के साथ साथ बौद्धिक विकास के उपक्रम चलाये जाते हैं. ये व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में मम्ह्त्वपूर्ण योगदान देते हैं.

dainik shakha
दैनिक शाखा 

दैनिक शाखा का महत्त्व


एक भला सामान्य पारिवारिक व्यक्ति जिसके कंधे में गृहस्थी का थैला टँगा हो वो भला दैनिक जीवन का कितना आनंद उठा सकता है. दैनिक जीवन के तनाव उम्र से पहले ही उसे बूढ़ा करने को उतारू हैं. देव योग से जिन कुछ लोगों का संघ के स्वयंसेवकों से संपर्क हो जाता है, तो उनके जीवन की बगिया में फिर से बाहर आ जाती है.

शाखा का संघ स्थान दैनिक स्वयंसेवकों की साधना से इतना पवित्र हो जाता है कि उसकी ममतामयी वात्सल्य की अनुभूति, शीघ्र ही नए स्वयंसेवकों को होने लगती है.

नशा शब्द का प्रयोग सामन्यतया गलत अर्थों में ही लगाया जाता है, किंतु सत्संग का यदि किसी मे रंग चढ़ गया तो फिर किसी दूसरे रंग के चढ़ने की गुंजाइश भला बचती ही कहां है.

ऐसे भी कई प्रसंग सुनने मैं आते हैं, कि दस, पंद्रह या बीस वर्ष की संघ आयु के स्वयंसेवक जब कभी अपने क्षेत्र से अन्यत्र किसी दूसरे स्थान में लंबे समय के प्रवास में जाते हैं तो उन्हें मेहमानदारी की आवभगत के बाद भी जीवन मे कुछ ना कुछ खालीपन का सा अहसास होता है . ये अहसास ठीक वैसा ही होता है जैसा कि दैनिक मंदिर में भगवान के दर्शन करने वाले भक्त को प्रवास में मंदिर जाने को ना मिले. या फिर पूरे जीवन भर नौकरी करने वाले वयक्ति को रिटारमेंट के अगले दिन आफिस जाने को न मिले.

ये काल्पनिक महिमामंडन नहीं है. आप सामान्य जीवन मे यदि दो व्यक्तियों को कहीं आपस मे गले मिलते हुए देख ले तो बहुत संभव है कि, यदि वे निकट संबंधी या रिस्तेदार ना हों तो स्वयंसेवक ही हो सकते हैं.

कैसे इतनी आत्मीयता उत्त्पन्न हो जाती है ये चमत्कार है संघ की शाखा का. जहां सभी मिलकर इस मातृभूमि की वंदना करते है. सही सही कहा जाय तो जीवन के 7 X 23 घंटों के लिए अतुलित ऊर्जा की दैनिक आपूर्ति स्वयंसेवको को संघ स्थान करता है.

धीरे धीरे हम स्वयंसेवको के अन्य गुणधर्मों का भी विश्लेषण करेंगे तो एक सामान्य व्यक्ति को इतना ससक्त बना देता है कि वह अपने व अपने परिवार के लिए ही नहीं अपितु समाज व राष्ट्रीय उन्नति का भी आधार बनता है.

यह भी पड़े:- राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ क्या है ?

बौद्धिक कार्यक्रम:-


जुलाई के माह के बौद्धिक कार्यक्रम की एक झलक प्रस्तुत कर रहा हूँ , पसंद आने पर कमेंट में भारत माता की जय जरूर लिखें. और इस पोस्ट को अपने मित्रों को जो संघ के बारे में जिज्ञासा रखते हों से शेयर भी कर सकते हैं.

सुभाषित:-

उद्यमं साहसं धैर्यं, बुद्धि शक्ति पराक्रम: ।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देव: सहायकृत||

जहां पर परिश्रमशीलता, साहस, धैर्य, विवेक, शक्ति एवं पराक्रम ये छ: गुण होते है, वहाँ पर देवता भी सहायक हो जाते हैं।

अमृत वचन:-


स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि- "यदि जगत में कोई पाप है तो वह है दुर्बलता। अतः दुर्बल कदापि ना बनो। बलहीन को ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। दुर्बलता ही मृत्यु है। दुर्बलता ही पाप है। इसलिए सब प्रकार से दुर्बलता का त्याग कीजिए अन्यथा तुम किसी भी वस्तु पर विजय कैसे प्राप्त कर सकोगे?"

शाखा गणगीत:-


आँधी क्या है तूफान मिले, 
चाहे जितने व्यवधान मिलें, 
बढ़ना ही अपना काम है, 
बढ़ना ही अपना काम है।। 

हम नई चेतना की धारा, 
हम अंधियारे में उजियारा, 
हम उस बयार के झोंके हैं, 
जो हर ले जग का दुःख सारा, 
चलना है शूल मिले तो क्या, 
पथ में अंगार जले तो क्या, 
जीवन में कहाँ विराम है, 
बढ़ना ही अपना काम है।। 1।। 

हम अनुगामी उन पाँवों के, 
आदर्श लिए जो बढ़े चले, 
बाधाएँ जिन्हें डिगा न सकीं, 
जो संघर्षों में अड़े रहे, 
सिर पर मंडराता काल रहे, 
करवट लेता भूचाल रहे, 
पर अमिट हमारा नाम है, 
बढ़ना ही अपना काम है....।। 2।। 

वह देखो पास खड़ी मंजिल, 
इंगित से हमें बुलाती है, 
साहस से बढ़ने वालों के, 
माथे पर तिलक लगाती है, 
साधना न व्यर्थ कभी जाती, 
चलकर ही मंजिल मिल पाती,
फिर क्या बदली क्या घाम है, 
बढ़ना ही अपना काम है।। 3।।

बोधकथा:-

परिस्थिति को दोष नहीं

एक बार डॉ साहब नासिक में बीमार थे।

उस समय डाक्टर जी ने देखा कि उनके तौलिए का दाग धोने वाले ने साफ नहीं किया है। जब उन्होंने इस विषय में पूछा तब उत्तर मिला कि वह दाग साबुन से निकल नहीं सकता है। डॉ जी कुछ न बोलें। जब अन्य सभी साथी भोजन करने लगे तब डॉ जी चुपचाप अपने पलंग से उठें।

उन्होंने स्नान गृह में जाकर उस तौलिए को साबुन से भलीभांति धोया,दाग बिल्कुल छुड़ा दिया। और तौलिए को पुरानी जगह पर सूखने को डाल दिया। भोजन से लौटने के बाद सब साथियों की नजर तौलिए पर पड़ी तब उनके मन में कितनी ग्लानि हुई होगी?

विशेष कर उन्हें बुखार में इतनी मेहनत हुई यह देखकर जिनके द्वारा धोते समय तौलिए का दाग रह गया था उनकी आंखों में आसूं आ गए

डॉ जी ने बाद में उक्त घटना का उल्लेख करते हुए शिक्षा दी कि कई बार हम अपने प्रयत्नों की कमी की ओर ध्यान न करते हुए परिस्थिति पर दोष लगाकर समाधान मान बैठते हैं।

किंतु यदि हम सम्यक प्रयत्न करें तो परिस्थिति की कठिनाईयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।।

निष्कर्ष:-  

एक सामान्य राष्ट्र प्रेमी व्यक्ति को जब कभी भी अवसर मिले लगातार कम से कम एक दो हफ्ते दैनिक शाखा दर्शन अवश्य करना चाहिए.


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4 Comments:

At July 26, 2020 at 9:20 PM , Blogger K.K. Gaurav said...

बहुत अच्छा वर्णन किया आपने धीरेंद्र जी।

 
At July 27, 2020 at 8:28 AM , Blogger DEVENDRA_ALIG said...

बहुत सुंदर शाखा की व्याख्या। मन प्रसन्न हो गया।

 
At July 27, 2020 at 1:14 PM , Blogger Jivanotkarsh Prerna said...

बहुत बहुत धन्यवाद, गौरव जी

वास्तव में संघ की शाखा एक स्वयमसेवक के जीवन में ऐसा परिवर्तन कर देती है की वो इसके बगैर अधूरा-अधूरा सा महसूस करता है. इसके एक दो नहीं अनगिनत उदाहरण हैं.

एक बार पुनः धन्यवाद.

 
At July 27, 2020 at 1:47 PM , Blogger Jivanotkarsh Prerna said...

धन्यवाद देवेन्द्र जी,

आशा है यह एक छोटा सा प्रयास स्वयमसेवक व किसी भी संघ के जिज्ञासु के लिए सतही जानकारी प्रदान कर सकेगा.

अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आभार.

धीरेन्द्र

 

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