ईश्वर की लीला, में ही Inspiration है जो जीवनोत्कर्ष प्रेरणा, Life Inspiration का आधार है।
परमात्मा, जिसने ये श्रृष्टी रची सम्भवतः उसे ये एहसास रहा होगा कि जब इस धरती का एक प्राणी प्रकाण्ङ़ पंङ़ित रावण अपने मद व अहंकार में चूर होकर इस श्रृष्टी को हङ़पने की चाह में महादेव को प्रसन्न करने के लिए अपने शीश तक काट काट कर भोलेनाथ को अर्पित कर सकता है तो न जाने मनुष्य कहाँ तक गिरेगा इसलिए ईश्वर ने सामान्य जीवन में तीन ऐसी कंण्ङिसन लगा दी
1:- अनाज में कीङ़े पैदा कर दिए, ताकि लोग सोने चांन्दी की तरह इसे इकट्ठा न कर सकें।
2:- मृत्यु के पश्चात शरीर से दुर्गन्ध उत्पन्न कर दी नही तो लोग अपने प्रियजनों की मोह ममता वश अन्तयेष्टि ही नहीं करते।
3:- जीवन में आये बङे से बङे संकट और अनहोनी के सांथ रोना और समय के सांथ भूलना दिया, ताकि जीवन में सदा के लिए अंन्धकार व निराशा घर ना कर सके व मनुष्य पुनः एक बार फिर से कर्मपथ में अग्रसारित हो सके।
अतः माया तो माया है; प्राणि को चाहिए कि वह तटस्थ भाव से कर्म करते हुए ईश्वर को अपना सर्वश्व अर्पित करते हुए बंन्धन मुक्त होने के लिए प्रयासरत रहे।
धन्यवाद
नोट:- आपकी टिप्पणी का आकांक्षी
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