6/15/2020

योग दिवस, IDY 2020, 21 June International yoga day का महत्व.

इस वर्ष के योग दिवस IDY 2020 की प्रासंगिकता पूर्व के वर्षो से कहीं ज्यादा है


International Day of Yoga 2020
IDY 2020

योग दिवस, IDY 2020, 21 June International yoga day का महत्व 


योग दिवस IDY 2020 की प्रासंगिकता:-



सबसे बड़ा जो फर्क है वो ये है की इस बार 21 June international yoga day पार्कों के बदले, हम सभी 

लोग अपने अपने घरों में ही मनायेगे. Online IDY 2020 में सम्मिलित होने के लिए आप अपना नाम, आयु, 

लिंग (Gender) की जानकारी इस लिक इस लिक पर भेज देंगें. 


स्वामी रामदेव जी महाराज से प्रशिक्षित योग शिक्षकों की टीम
स्वामी रामदेव जी महाराज से प्रशिक्षित योग शिक्षकों की टीम 

ताकि आपको online yoga day celebration में सम्मिलित होने के लिए Link भेजा जा सके. हमने पिछले 

सभी पांचों international yoga day celebrationn बड़ी भव्यता के साथ मनाये हैं, गत वर्ष 

का international yoga day 2019 पतंजलि योगपीठ के तत्वाधान में योग ऋषि स्वामी रामदेव जी  की सूक्ष्म 

उपस्थिति में सर्व समाज के सांथ मनाया गया था. जिसमें लगभग 500 से अधिक नागरिकों ने भागीदारी करी थी.




IDY 2019 समारोह

IDY 2019 समारोह के प्रतिभागी योग शिक्षक

IDY 2019 समारोह के प्रतिभागी योग शिक्षक ग्रुप
IDY 2019 समारोह के प्रतिभागी योग शिक्षक ग्रुप 

World Yoga Day:-



योग दिवस आज से लगभग 5 वर्ष पूर्व, 21 जून को जब, अंतराष्ट्रीयकरण योग दिवस का शुभारंभ हुआ था, तब 


किसी ने सोचा भी नहीं होगा की कुछ ही वर्षों में एक ऐसी घटना भी घटेगी जो मानवता पर कहर बनकर 


टूटेगी. किसे पता था की योग जिसकी प्रतिस्थापन उस दिन की जा रही थी कुछ ही वर्षों में वो घटना मनुष्य के 


जीवन बचाने के लिए संजीवनी का सा काम करेगी. 21 जून का दिन सबसे लंबी अवधि का दिन, longest 


day on the earth होता ह. इसमें यह कामना की गयी है, कि मनुष्य सुख पूर्वक और निरोगी जीवन यापन 


कर सके. 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सभा में, अपने भाषण में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा था,



"योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है, यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है;
 
मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वस्थ और
 
भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण भी प्रदान करने वाला है. यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने
 
भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति के खोज के विषय में है. हमारी बदलती जीवन शैली में यह
 
चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है. तो आयें एक अंन्तराष्ट्रिय योग
 
दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं."


योग की कल्याण की भावना:-


हालांकि पूर्व में भारत के आव्हाहन मात्र से, वैश्विक स्तर पर एक बड़ा परिवर्तन आ जाना चाहिए था, किन्तु 

अफ़सोस इंसान की मानसिकता भला इतनी आसानी से किसी बात को मानने को तैयार कहाँ होती है. उसने 


एक बार फिर, सर्वत्र वैश्विक कल्याण की, कामना करने वाली, भारतीय परम्पराओं की अनदेखी की; वो 


भारतीय आग्रह की आत्मा को समझ ही नहीं पाये”. खैर फिर भी संतोष इस बात का है की, विश्व ने कम से कम 


इसके प्रति अपना सम्मान व कृतज्ञता व्यक्त करते हुए, 177 देशों ने 21 जून को अंन्तराष्ट्रिय योग दिवस मानाने 


को सैधांतिक अनुमति दी. भारत के इस प्रस्ताव को ऐतिहासिक रूप से  सबसे कम 90 दिनों में 11 सितंबर 


2014 को 193 देशों ने सर्वसम्मति से "21 June ko International Day of Yog” IDY  के रूप में 

मंजूरी दे दी.  भारत के इन प्रयासों का संपूर्ण विश्व ने स्वागत किया. योग पर वैश्विक स्तर पर कार्य आरम्भ हुआ 


कई रिसर्च होनी आरम्भ हुई. योग का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव के विषय पर वर्तमान समय में योग को सिद्ध 


कर चुके भारतीय तपस्वी ऋषियों के प्रतिनिधि स्वामी रामदेव जी महाराज के सांथ वैश्विक विचार मंथन आरम्भ 


हुआ. परिणाम स्वरूप आज यह वैज्ञानिक रूप से इस बात की  स्विकार्योक्ति हो गई है की मानव स्वास्थ्य को 


केवल दवाओं के माध्यम से आजीवन स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है. यदि मनुष्य को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना है 


तो उसे Yog को जीवन में, Life Style में नित्य कर्म के रूप में धारण करना ही होगा.

भारत की योग परम्परा:-


भारत की योग परम्परा अनादि काल से, हिन्दू जीवन पद्यति का निर्वहन करने वालों की, अपने शरीर को,

आजीवन स्वस्थ रखने का आधार रही है. ये परम्पराएँ hindu life style का ऐसा ऐसा अभिन्न अंग होती थी की

एक बार को व्यक्ति, बिना food खाए-पिये रह ले पर नित्य-कर्म में सम्मिलित योगाभ्यास को नहीं छोड़ सकता 

था. तब और आज के life style में इतना फर्क आ गया है, कि आज व्यक्ति सब कुछ छोड़ने को तैयार है, पर

स्वयं के अच्छे स्वस्थ, good health के लिए थोडा त्याग और परिश्रम को तक importance नहीं दे पा रहा है.

भारतीय परम्परा में योग को सम्पूर्ण सुख का आधार माना गया है. गीता जी में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार

योगः कर्मसु कौशलम.

अर्थात सभी प्रकार के कर्मों को, आजीवन, श्रेष्ठता से करने का ही नाम ही योग है.

प्रज्ञापराधो ही सर्वरोगाणां मूलकारणम्.

महर्षि चरक के उपरोक्त, प्रज्ञापराधो ही सर्वरोगाणां मूलकारणम् के भाव को हृद्यंग्म करने में ना जाने कितना 

समय लगे यह तो समय ही बताएगा. लेकिन आज के इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में इस बात की सर्वमान्य  

स्वीकारोक्ति हो गयी है की “Stress is the main cause of all diseases” अर्थात तनाव ही सभी बिमारियों 

की जड़ है. और वर्तमान जीवन का तनाव व्यक्ति द्वारा स्वयं निर्मित किया हुआ है. कैसे ? इसे समझने  के लिए  

योग की परिभाषा के अनुसार:-

“योग्श्च चित्त वृत्ति निरोधः”

अर्थात चित्त की वृत्तियों के निरोध को ही योग कहते हैं. जो “Stress is the main cause of all diseases”

के निर्मूलन का आधार है. अर्थात विज्ञान और योग में एक प्रकार की समानता सी की देखने में आती है. योगिक

क्रियाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से टेस्ट ना किये जाने की वजह से योगिक क्रियाओं से मनुष्य के स्वस्थ को हो

सकने वाले लाभों की जानकारी नहीं हो सकी थी. जबकि भारतवर्ष आदिकाल से ही अपने उत्तम स्वास्थ्य लाभ

के लिए योग पर ही निर्भर था.


निष्कर्ष:- 



मानव स्वास्थ्य के challanges को देखते हुए और वर्तमान चिकित्सा पध्यती की खामियों ने भारतीय 

योग पध्यती के साधकों को एक बार फिर से योग की शरण में जाने को प्रेरित किया. योग ऋषि स्वामी रामदेव 

जी महाराज ने योगिक क्रियाओं का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाओं का वैज्ञानिक शोधों पर आधारित 

अध्ययन शुरू करवाया.  योग को अंतराष्ट्रीय पहचान मिलने से योगिक क्रियाओं पर लगातार हो रहे शोधों ने 

सिद्ध कर दिया है की Yogic therapy, alopathy के ही सामान स्वास्थ्य वर्धक होने के अलावा इसके 

कोई side effects भी नहीं हैं, अतः यह एक श्रेष्ठ चिकित्सा पद्यति के रूप में अब प्रचलित होने लगी है. योग 

की अंतराष्ट्रीय स्वीकारोक्ति ने भारतीय योग और आयुर्वेद के ज्ञान का लाभ वैश्विक स्तर पर सबके लिए 

सुलभ होने का रास्ता खोल दिया.

वर्तमान कोरोनावैश्विक महामारी में yogic therapy, योग चिकित्सा ने विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले, हमारे भारत देश को, लड़ने का मजबूत आधार प्रदान किया है. इस वर्ष कोरोना pendamic की वजह से विश्व योग दिवस Online मनाया जाने वाला है IDY 2020, 21 June international yoga day की तैयारियां पूरे जोर शोर से चल रहीं हैं.

अंतराष्ट्रीय योग दिवस सबके लिए शुभ हो.    


Labels:

6/11/2020

कलम और वाणी की सार्थकता।

बहुत सुंदर,



पेशेवर लोग भले ही बेच दें, अपनी वाणी या भले ही बेच दें अपनी लेखनी किन्तु है तो ये माँ सरस्वती की कृपा।



ये बात सही है किसको पड़ी है आज इस दकियानूसी सोच की लेकिन सत्य और सास्वत यही है कि सरस्वती की कृपा के बगैर शब्दों की प्राण प्रतिष्ठा कठिन ही है। इसका व्यापार और सौदा भी, फलीभूत उसी को होगा अर्थात पूण्य की कमाई भी उसी की होगी जो इंसानियत के सौदे में इनके प्रयोग से, अपने को बचाये रखेगा।



नेता वर्ग ने, जो आज इस संसार की हालत की है, अधिकांश उसके लिए दोषी ही हैं, जो लोगों के हालात की पैरवी करते, वे धीरे-धीरे अस्ताचलगामी होते गए, हांसिये में , निस्तेज पड़े पड़े, अपने भाग्य को, पानी पी पी कर कोसते हैं।



आसान नहीं है, यहां न्याय कर पाना, अपने किरदार से, क्योंकि इम्तहान और परीक्षा, जो पढ़ाई के सांथ खत्म हो जाती है, वो रूप बदल-बदल के, जीवन के संग्राम में, हर पल परीक्षा लेती है, जिसका परिणाम, जीनव के अंतिम चरण के वर्षों में हर बदलते हुए महीने, तारीख व पल-पल के सांथ प्राप्त होता है।



पाठक जी ने, बड़े ही सुंदर शब्दों में सभी को सचेत रहने का आग्रह कर कलम का मान बढ़ाया है।



आभार




6/08/2020

Swadeshi तरीके से Emmunity बढायें और Corona भगाएँ.

Swadeshi तरीके से Emmunity बढाने वाले प्रोडक्ट का प्रयोग करें, इमुनिटी बढायें, Corona भगाएँ.

नमस्कार, 

आज बड़े भारी मन से यह पोस्ट लिखने के लिए बैठा हूँ. जैसा की लगातार यह चर्चा में बना हुआ है की 

कोरोना महामारी से कैसे बचाव किया जाय ?

वास्तव में कोरोना महामारी क्या है ? कहाँ से आई ? किसने पैदा करी ? जैसे कई सारे प्रश्न सभी लोगों के मन में पैदा हो रहें हैं. स्वभाविक भी है रोज हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं, बहुत घबराहट भी है, डर के मारे प्राण सूखे जा रहें हैं. यह सब अस्वभाविक नहीं है. मौत सामने दिखती है तो अच्छे अच्छोके होश उड़ जाते हैं. मौत का डर क्या होता है ? वही समझ सकता है, जिसको अगली श्वांस लेने में कठिनाई होती है. . . . . . बस-बस-बस इससे ज्यादा ना लिखा जायेगा . . . .!!!

इस डर को व्यक्त करना और लिखना भी तो एक प्रकार से पाप ही है . . . . . किसी को क्या अधिकार है, की वो किसी को डराए, . . . . नहीं-नहीं, मेरा डरने डराने का कोई इरादा कत्तई नहीं है, हम तो बस इतना चाहते हैं की हमारे सभी भाई बंधू, मित्र, परिचित, अपरिचित, दूर दराज के, आस-पास के, देश-विदेश मे रहने वाले सभी निरोगी व स्वस्थ रहें. भारत से, इतनी दूर से तो हम, उनके स्वास्थ्य की केवल मंगल-कामना ही कर सकते है. इसके अतिरिक्त सावधानी के रूप में, लोकल एडमिनिस्ट्रेशन की सलाहों का अक्षरशः अनुपालन, emunity बढाने वाले पेय पदार्थों जैसे काड़ा इत्यादि का सेवन, व खाने पीने में सभी प्रकार की सावधानी बर्तने का अनुरोध वैश्विक सभी से है. हम भारतीय तो निश्चित ही winner side में ही रहेंगें, किन्तु इंसानी क्रूरता ने प्रकृति को इतना सताया है की अब वह इससे आगे केवल करुना वान प्रजाति को ही अपने साथ रहने का अधिकार देने वाली है.



अतः बस, अब और सताना, दिल दुखाना, रुलाना, मार-पीट के जान ले लेना. क्या कसूर है उन निरीह प्राणियों का . . . . . केवल इतना की वे मनुष्य का प्रतिकार नहीं कर सकते, उनसे अपना बचाव नहीं कर सकते. नहीं नहीं  बस अब और नहीं, प्रकृति ये सब और बर्दास्त नहीं करने वाली है. तो क्या करें . . . . ???

बहुत सुन्दर . . . . . अब हम सब मिलकर वही करें जो हमारे DNA में है. . . . . . ठहरिये-ठहरिये में कोई फिलोस्फिकल बात नहीं कहने जा रहा हूँ. . . . . में तो बस इतना सा कहना चाहता हूँ की हम अपनी दिन चर्या को सुधार लें बस. कठिन है क्या ???. . . . . दिन चर्या में बदलाव करना. . . . . लेकिन मित्र बड़ा दुःख होता है ये कहते हुये की ये तो करना ही पड़ेगा. में नहीं कह रहा हूँ में कौन होता हूँ कुछ कहने वाला. . . . लेकिन आप प्रकृति के सन्देश को स्पष्ट समझें यहाँ से आगे वह और क्रूरता की इजाजत इन्शानों को नहीं देने जा रही है.

तो अब क्या करें . . . . ???

1) भक्ष्य-अभक्ष्य का ध्यान रखकर अपने भोज्य पदार्थों का चयन करें.

2) यथासंभव मांसाहार से बचे. में तो कहूँगा साकाहारी बने.

3) गरिष्ट खाने से बचे. सदा ताजा व पोष्टिक भोजन ही करें.

4) विटमिन्स व मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में लें.

5) ठन्डे पानी से बचें. यथासंभव ना पियें. पेप्सी, कोक, आइसक्रीम व कुल्फी इत्यादि के सेवन से भी बचें. गर्म, सामान्य पानी पीने की आदत का भी हम यहाँ से एक अच्छी शुरुवात कर सकते है.

6) नोर्मल tea की जगह Green Tea की भी शुरुवात करने का ये एक अच्छा अवसर है. ग्रीन टी बगैर मीठे के पी जाती है अतः आप आसानी से suger intake की मात्रा भी कम कर सकते हैं. 

उपरोक्त बातें सामान्य हैं जो सामान्य दिनों में भी हमें आयुर्वेद  के अनुसार खान पान ठीक रखने के लिए प्रेरित करती हैं. किन्तु Corona काल में इन बातों का कड़ाई से पालन, हमें कोरोना से बचाव में सहायक है. 

इसके अतिरिक्त कोरोना से बचाव हेतु हमें निम्नलिखित चीजों को भी दिनचर्या मे शामिल करना होगा.

1) पीने में सदैव गुनगुने पानी का ही उपयोग करना है, फ्रिज के ठंडे पानी से बचना है.

2) चाय का सेवन यदि करते हैं तो अदरख व कालीमिर्च  के साथ करना लाभप्रद होगा.

3) सर्दी-जुकाम होने अथवा बुखार आने पर काडे का प्रयोग अविलम्ब शुरू कर दें. asimptimetic सभी लोग इससे ठीक हो जाते हैं.

असल में आधुनिक बनते बनते हम वहां पहुच गये हैं जहाँ देर सबेर सभी लोग, स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं से घिर ही रहे हैं. यदि गहराई से देखें तो कोरोना इंसानों को सचेत करने ही आया हैकोरोना समझा रहा है - 

1) निरीह प्राणियों को ना सतायें उनमे भी जीवात्मा का वास है.

2) केवल अपने सुख के लिए प्रकृति का अंधाधुन्द दोहन ना करें.

3) प्रकृति से जो कुछ भी अपने लिए लें बराबर मात्रा में प्रकृति को विनम्रता से लौटाएँ.

हम मनुष्य जीवन के, स्वामी तो हैं, लेकिन यहाँ (धरती) के, मालिक नहीं हैं. एक निश्चित समयावधि के बाद हमें ये दुनियां छोडनी ही है. अतः बड़े भाग्य से मिले इस मनुष्य जन्म को थोड़ी से असावधानी से गवाने से बचने का हर संभव प्रयास करना ही चाहिए. सरकारों ने एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है. हमें व हमारे देश को बचाने में. अतः उपरोक्त सभी प्रकार की सावधानियों व खान पान के अतिरिक्त शरीर की इम्युनिटी को बढाने के लिए योग, आसन व प्राणायाम को दिन चर्या में अनिवार्य रूप से शामिल करने की सलाह दी जाती है.

भारतवर्ष ने आज ही नहीं सदा से ही श्रेष्ठ जीवन पद्यति का अनुसरण किया है और सभी को इसकेलिए प्रेरित भी किया है. आज हमें गर्व है की ऋषि परम्परा के अग्रज परम पूज्य स्वामी रामदेव बाबा का योग  हमें सुलभ है. इस लिंक को क्लिक करके आप कोरोना से बचाव में सहायक योगाभ्यास आप सीख कर कोरोना को हराने में सफल हो सकेंगें.



मेरा आप सभी से नम्र निवेदन है की मेरे इस पोस्ट  " Swadeshi तरीके से Emmunity बढाने वाले प्रोडक्ट का प्रयोग करें, इमुनिटी बढायें, Corona भगाएँ. " को  ज्यादा से ज्यादा social media में facebook, whatsapp व twitter के माध्यम से शेयर कर कोरोना से जंग में सहयोग करेंगें. अपने सुझाओं से भी मुझे अवगत करेंगें ऐसी अपेक्षा है.   


Labels: ,

6/06/2020

Sri Madhav Sadashiv Golvalakar, श्री गुरु जी, RSS के, द्वितीय सर-संघचालक, पुण्यतिथि 05 जून

डॉ० हेडगेवार  जी के पश्चात Madhav Sadashiv Golvalakar, श्री गुरु जी को राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ का, द्वितीय सर-संघचालक बनाया गया

Madhav Sadashiv Golvalakar
Madhav Sadashiv Golvalakar

Sri Madhav Sadashiv Golvalakar, श्री गुरु जी, RSS के, द्वितीय सर-संघचालक, (पुण्यतिथि 05 जून)


संघ की प्रष्ठभूमि:- 

RSS संघ के प्रथम आद्य सर-संघचालक प० पूज्य डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार जी ने अपनी दूरदृष्टि से सर्वकालिक घटनाचक्र को देखते हुए हिंदुओं पर होने वाले जातीयधार्मिक व सांस्कृतिक हमलों से बचाव करने के ऊद्देश्य से, RSS की स्थापना की थी. जैसा की हम सभी जानते व मानते हैं, की इस धरती पर श्रेष्ठ जो धर्म हो सकता हैउस मानव धर्म के प्रतिरूपसनातन धर्म का प्रण-प्राण से, आदि-अनादि काल सेपालन करने वाले देश के लोग, "हिन्दू जीवन पद्यति" के अनुपालन की वजह से ,  प्राणिमात्र में, शिव को ईश्वर (GOD), रूप में देखते हैं. हिंदुओं के इस दैवीय गुण, जो 

"सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामया

सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मां कश्चित् दुखः भागभवेत”.

के सिद्धान्त को जीवन का आधार मानता है. देश देशान्तर की सीमाओं को, शासन-प्रशासन की दृष्ट्री से ही, देखता व मानता है. सारे विश्व को एक कुटुंब के रूप में, स्वीकार करने वाली जीवन पद्यति, का अनुसरण करना, कितना कठिन है, इसका अनुमान, यदि किसी को करना है, तो वह, " हिन्दू जीवन पद्यति" का अध्ययन करे.

हिन्दू जीवन  पद्धति का प्रकृति सम्मत आधार:-

हम यह मानते हैं की ईश्वर के निवास स्थान, हमारे इस तन रुपी मन-मंदिर, के स्वस्थ रहने के लिए, हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता, अच्छी होनी चाहिए. हमारे एंटीबॉडीज, WBC, रोगाणुओं के हमले से, हमारे शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं. ईश्वर ने सृष्टि के हर तंत्र के निर्विघ्न चलते रहने के लिए, हर स्तर पर उपचार तंत्र भी निर्मित किये हैं.

ब्रह्माण्ड व सृष्टि के प्रचालन में, ठीक वैसे ही जैसे हमारे जीवन में ऋतुएं आती हैंयुग आते हैं. पूर्णिमां की रात चांदनी की वजह से, रात्रि होने पर भी, मन में खुशियों की तरंगे, पैदा करती है. इसके विपरीत, अमावस की रात, कमजोर व अस्वस्थ लोगों को कष्ट देने वाली होती है. हमें मालूम है, रात की अवधी अपने निश्चित समय में पूर्ण होगी ही. और फिर से, एक नये दिन का उदय होगा, जो सबको नव-जीवन देगा. इस अवधारणा से, हिन्दू जीवन पद्यति, पोषित व पल्लवित है.

हिन्दुस्थान के कष्ट:- 

कलियुग के प्रभाव से, अधर्म व निकृष्ट सोच की प्रबलता, दुर्जनों के बल को बड़ाने वाली होती है. इसके परिणामस्वरूप, प्रकृति के साहचर्य में, जीवन यापन करने वाले प्राणी-जन, समय-असमय, संकटों से घिर जाते हैं. काल चक्र की गति के सांथ, जैसे-जैसे कलियुग की प्रबलता बड़ी है, वैसे-वैसे संकटों की तीव्रता भी बड़ी है. और जब-जब ऐसा संकट आता है, तब-तब ईश्वर महापुरुषों को, सृष्टि के संतुलन हेतु अवतरित करता है. इसी तरीके से, सृष्टि आदि-अनादि काल से, अपने को नव-सृजित करती रहती है.

माधव सदाशिव गोलवरकर, श्री गुरु जी, का  प्रताप:- 

ईश्वरीय अनुकंम्पा से, हिन्दू धर्मावलंबियों के उत्थान को कृतसंकल्प, राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ (RSS) का उदय तो हो गया, किन्तु आगे की राह आसान न थी. परम पूज्य डॉक्टर जी का असमय देव लोक गमन हो गया था. भारत माता अभी भी बंधनों में ही जकड़ी हुई थी. माँ भारती के रन-बांकुरों ने, आतातायियों के दांत खट्टे कर रखे थे. बस किसी भी क्षण, भारत माता बेड़ियों को तोड़ कर, सिंहासनारूढ़ होने को ही थी. ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में, श्री गुरूजी ने, संघ की बागडोर समहालि थी. 

आपने ईश्वरीय विधान व डाक्टर जी की दूरदृष्टि को, ह्रदयंगम करते हुए, पर्याप्त साधना कर, अर्जित की हुई पात्रता से सर-संघचालक पद का दायित्व ग्रहण कियातत्पश्चात, आपने आजीवन, काल के चक्र की दिशा को, ईश्वरीय आदेशानुसार, इस तरह नियोजित किया की असहाय, मूक-बधिर समाज शनै-शनै पुष्ट होकर आत्मनिर्भर होना आरम्भ हो गया. 

इसके परिणामस्वरूप एक बार पुनः स्वराज का पथ आलोकित हो उठा. आज अनगिनत लोग, जहाँ कहीं भी हिन्दू हैं, उनमे नव ऊर्जा का संचार हुआ है. उनके मन में पुनः, “वसुधेव कुटुम्बकम” के बीज मन्त्र का अंकुरण हुआ है, जो समिष्टि के नव श्रृजन का ईश्वरीय आधार है.

श्रद्धांजलि:-

आज 5 जून को, श्री गुरूजी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य पर, माँ भारती की सभी संताने, एक स्वर में, अपने नमन-वंदन पुण्यात्मा को अर्पित कर रहे हैं.


शत नमन माधव चरण में
शत नमन माधव चरण में ॥धृ॥

आपकी पीयूष वाणीशब्द को भी धन्य करती
आपकी आत्मीयता थीयुगल नयनों से बरसती
और वह निश्छल हंसी जोगूँज उठती थी गगन में ॥१॥

ज्ञान में तो आप ऋषिवरदीखते थे आद्यशंकर
और भोला भाव शिशु साखेलता मुख पर निरन्तर
दीन दुखियों के लिये थीद्रवित करुणाधार मन में ॥२॥

दु:ख सुख निन्दा प्रशंसाआप को सब एक ही थे
दिव्य गीता ज्ञान से युतआप तो स्थितप्रज्ञ ही थे
भरत भू के पुत्र उत्तमआप थे युगपुरुष जन में ॥३॥

सिन्धु सा गम्भीर मानसथाह कब पाई किसी ने
आ गया सम्पर्क में जोधन्यता पाई उसी ने
आप योगेश्वर नये थेछल भरे कुरुक्षेत्र रण में ॥४॥

मेरु गिरि सा मन अडिग थाआपने पाया महात्मन
त्याग कैसा आप का वहतेज साहस शील पावन
मात्र दर्शन भस्म कर देघोर षडरिपु एक क्षण में ॥५॥



Labels: