7/31/2020

Kundalini Jaagaran ka Saral tareeka kya hota hai ?

Kundalini Jaagaran का सरल तरीका सीखकर हम अपने जीवन के कष्टों को ही नहीं अपितु मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य को भी सरलता और आसानी से प्राप्त कर सकता है.


Flow of Cosmic Energy
The flow of Cosmic Energy

Kundalini Jaagaran

श्रृष्टि चक्र 

 

ओंकार मन्त्र में सारी श्रृष्टि का सार समाया हुआ है.

अ + उ + म

अकार + उकार + मकार

निर्माण + पालन + संहार

परब्रहम

परब्रहम शब्द में ईश्वरीय शक्ति का सार समाया हुआ है

ब्रह्मा + विष्णु + महेश

जीव और प्रकृति का सम्बन्ध :-

यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे.

अर्थात जैसा यह ब्रह्मांड है वैसा ही यह पिंड / शरीर है.

अर्थात जैसे इस ब्रह्माण्ड का क्रमिक संचलन होता है ठीक वैसे ही हमारे शरीर का भी निर्वहन होता है.

भाषा में थोडा सा ट्विस्ट है क्योंकि व्याख्या बहुत लम्बी और अनंत है !!

शरीर का उर्जा और जीवन चक्र :-


हम जो जो भी पदार्थ भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं वह सब पेट में आमासय में पक-कर रस रूप में परिवर्तित होकर विल्ली द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं. यह अवशोषित धातुएं रक्त के माध्यम से शरीर की मूलभूत इकाई cell अर्थात उतकों तक पहुचती है. जिससे शरीर की प्राथमिक इकाईयां पोषित होती है.

जिनके पोषण से शरीर के सम्बंधित अंग-प्रत्यंग उर्जावान बनते हैं और हमारा पूरा शरीर शक्तिशाली बनता है. इससे हम अपने जीवन के दैनिक कार्यों को सम्पादित करते करते, बड़े होकर सफल नागरिक बनते हैं.

उपरोक्त वर्णन सामान्य जैविक वर्णन है.

तो सामान्य व विशेष में क्या फर्क है ?? उसे समझने के लिए हम पहलवान के उदाहरण से समझते हैं, कि वह कैसे जीवन में लम्बा , . . . . . . . दैनिक और नियमित अभ्यास और साधना करके एक सफल पहलवान बनता है जो अपने वर्ग में सफलता के कीर्तिमान स्थापित करता है.

ठीक इसी तरह से सभी लोग प्रयास करके अपने अपने क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ते हैं और जीवन यापन करते हैं.

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7/26/2020

Dainik Shakha ka kya mahatav hota hai ?

दैनिक शाखा की कार्यपद्यति का अपना विशेष महत्त्व होता है. इसमें शारीरिक व्यायाम, समता के प्रदर्शन, खेल कूद के साथ साथ बौद्धिक विकास के उपक्रम चलाये जाते हैं. ये व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में मम्ह्त्वपूर्ण योगदान देते हैं.

dainik shakha
दैनिक शाखा 

दैनिक शाखा का महत्त्व


एक भला सामान्य पारिवारिक व्यक्ति जिसके कंधे में गृहस्थी का थैला टँगा हो वो भला दैनिक जीवन का कितना आनंद उठा सकता है. दैनिक जीवन के तनाव उम्र से पहले ही उसे बूढ़ा करने को उतारू हैं. देव योग से जिन कुछ लोगों का संघ के स्वयंसेवकों से संपर्क हो जाता है, तो उनके जीवन की बगिया में फिर से बाहर आ जाती है.

शाखा का संघ स्थान दैनिक स्वयंसेवकों की साधना से इतना पवित्र हो जाता है कि उसकी ममतामयी वात्सल्य की अनुभूति, शीघ्र ही नए स्वयंसेवकों को होने लगती है.

नशा शब्द का प्रयोग सामन्यतया गलत अर्थों में ही लगाया जाता है, किंतु सत्संग का यदि किसी मे रंग चढ़ गया तो फिर किसी दूसरे रंग के चढ़ने की गुंजाइश भला बचती ही कहां है.

ऐसे भी कई प्रसंग सुनने मैं आते हैं, कि दस, पंद्रह या बीस वर्ष की संघ आयु के स्वयंसेवक जब कभी अपने क्षेत्र से अन्यत्र किसी दूसरे स्थान में लंबे समय के प्रवास में जाते हैं तो उन्हें मेहमानदारी की आवभगत के बाद भी जीवन मे कुछ ना कुछ खालीपन का सा अहसास होता है . ये अहसास ठीक वैसा ही होता है जैसा कि दैनिक मंदिर में भगवान के दर्शन करने वाले भक्त को प्रवास में मंदिर जाने को ना मिले. या फिर पूरे जीवन भर नौकरी करने वाले वयक्ति को रिटारमेंट के अगले दिन आफिस जाने को न मिले.

ये काल्पनिक महिमामंडन नहीं है. आप सामान्य जीवन मे यदि दो व्यक्तियों को कहीं आपस मे गले मिलते हुए देख ले तो बहुत संभव है कि, यदि वे निकट संबंधी या रिस्तेदार ना हों तो स्वयंसेवक ही हो सकते हैं.

कैसे इतनी आत्मीयता उत्त्पन्न हो जाती है ये चमत्कार है संघ की शाखा का. जहां सभी मिलकर इस मातृभूमि की वंदना करते है. सही सही कहा जाय तो जीवन के 7 X 23 घंटों के लिए अतुलित ऊर्जा की दैनिक आपूर्ति स्वयंसेवको को संघ स्थान करता है.

धीरे धीरे हम स्वयंसेवको के अन्य गुणधर्मों का भी विश्लेषण करेंगे तो एक सामान्य व्यक्ति को इतना ससक्त बना देता है कि वह अपने व अपने परिवार के लिए ही नहीं अपितु समाज व राष्ट्रीय उन्नति का भी आधार बनता है.

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7/25/2020

Rashtriya Swyamsewak Shangh क्या है ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने से पहले हमें संघ, संगठन, स्वयमसेवक व शाखा जैसे सामान्य शब्दों की जानकारी कर लेनी चाहिए. जिससे की हम RSS अर्थात संघ को आसानी से समझ सकें.

Rashtriya Swayamsewak Sangh
Rashtriya Swayamsewak Sangh

Rashtriya Swyamsewak Shangh


* संघ क्या है ?

सामान्यतया समानार्थी सोच वाले लोगों के समूह को ही हम संघ कहते हैं. संघ कई प्रकार के होते हैं.

* संगठन क्या है ?

एक जैसी समानार्थी सोच से प्रेरित एक लक्ष्य के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों के समूह को संगठन कहते हैं.

* एक संगठन में कौन-कौन संम्मिलित हो सकते हैं ?

एक जैसी समानार्थी सोच से प्रेरित, एक लक्ष्य के लिए कार्य करने वाले व्यक्ति संगठन में संम्मिलित हो सकते हैं. 

* अलग अलग प्रकृति के लोगों का संगठन क्यों नहीं हो सकता है ?

सामान्य रूप से भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोगों का आपस में ताल-मेल बैठना कठिन होता है. और बेमेल परस्पर विपरीत प्रकृति के लोगों के संगठन का कोई अर्थ नहीं होता है. सामान्य जीवन में भी सभी लोग मिलावट रहित शुद्ध वस्तुओं को ही जीवन में प्रयोग करना चाहते हैं, मिलावटी वस्तुऐ नुक्सान पहुचाती हैं.

मिलावटी सामान के क्या क्या नुकसान हो सकते हैं ? हम सभी जानते ही हैं. अतः मिलावट मानसिक रूप से अस्वीकार्य है. Quality Product के निर्माण के लिए विशुद्ध चीजों की आवश्यकता होती है. उदाहरणार्थ शुद्ध जल व शुद्ध वायु इतनी मूल्यवान हैं की एक शुद्ध आक्सीजन (मेडिकल आक्सीजन) के सिलेंडर का मूल्य पांच सौ रूपये व एक लीटर उच्च गुणवत्ता वाले पानी को लोग 650 रूपये प्रति लीटर तक की कीमत में भी खरीदते हैं. इससे स्पष्ट होता है की शुद्ध चीजें कितनी मूल्यवान और अनमोल हैं. 

Quality product दूर से ही चमकता है वह सर्वमान्य रूप से सभी को पसन्द होता है. अतः सभी उसको अपनाना  चाहते हैं. अपने जीवन में, उच्च आदर्शों का, दैनिक, अनुसरण करने वाले लोगों का, संगठन, निश्चित ही अपने लक्ष्यों को प्राप्त करता है. इसलिए कठिन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जीवन मे सत-संगती, प्रेरणा के सांथ-सांथ अपने शुभचिंतकों के लिए कुछ ना कुछ त्याग का भाव व्यक्ति के मन में होना ही चाहिए. 

वर्तमान परिदृष्य में तब, जब की, बिना जुगाड़ के, एक पग भी आगे बड़ना कठिन है, लोगों का विश्वास, इन सैद्धांतिक बातों को, पचा नहीं पाता है. ये सब उन्हें कपोल कल्पित सी, बातें लगती हैं. . . . . . !!! किन्तु सच को आंच नहीं. और वैसे भी हम सभी ने अपने सफल वर्तमान जीवन के निर्माण के लिए, पूर्व में कितनी मेहनत करी है, वो हम सब भली प्रकार से जानते ही हैं.

किन्तु परिस्थिति जन्य, परिस्थितियां, हमें दबाव में लाती हैं. और हम समझते जानते हुए भी सही बात का अनुसरण  करना तो दूर सही बात का समर्थन करने तक में स्वयं को असहाय सा महसूस करते हैं, और पचड़े से बचने के लिए, परिस्थिति वश आचरण करने लगते हैं. इन परिस्थिति जन्य, परिस्थितियों ने, भारत को सोने की चिड़िया से गरीब, पिछड़े और भिखारी देश के रूप में, विश्व के सामने खडा कर दिया था.

अब से कोई एक, दो, तीन दशकों पूर्व, आजादी के बाद से लगातार विश्व के इस समृद्धशाली राष्ट्र को धीमे-धीमे क़ानून सम्मत परिस्थितियां बनाकरके, ऐसा बर्बाद करने का कुचक्र चलाया गया कि यदि देश को वर्तमान सवेदनशील सरकार ना मिली होती तो, आज की ये कोरोना महामारी ताबूत में अंतिम कील का सा काम करती.

खैर ये सभी बातें हम इस "जीवनोत्कर्ष प्रेरणा" मंच के माध्यम से लगातार समय-समय पर करते रहेंगे. आप से अपेक्षा है कि आप, राष्ट्र निर्माण के अपने दायित्व को, बगैर किसी भी प्रकार की स्थिलता बरते, अपना समर्थन दें, आपके पास इस सन्दर्भ में यदि कोई सुझाव हो तो, उसे कम्मेंट के माध्यम से हम तक अवश्य पहुचायें. इस रोमांचकारी यात्रा के सहयात्री बनने के लिए हम आप सभी को हृदय से आमंन्त्रित करते हैं. आपसे आग्रह है इस ब्लॉग को लाईक, फॉलो व  सोशियल मीडिया के माध्यम से फेसबुक, ट्विटर व व्हात्सेप में शेयर करके अपना समर्थन व्यक्त करेंगें. 

ऐसे स्वयं अपने व जनसामान्य के जीवन के उत्कर्ष और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करने वाले सेवा-भावी लोगों को हम स्वयमसेवक कहते हैं.

सामान्यतया उपरोक्त इच्छा लगभग सभी लोगों के मन में होती तो है, पर उन्हें ये समझने में कठिनाई होती है, की ये सब संभव होगा तो होगा कैसे. . . . . . ??? 

हर आसान आसान से लगने वाले कामों में भी तकनिक, के ऐसे ऐसे पेंच बनाकर, फसाए गये हैं, की उनसे पार पाना असंभव नहीं तो आसान भी कदापि नहीं है.

अब, जब, हर रास्ते में, केवल बाधाऐ ही बाधाऐ हैं, तो फिर इस चक्रव्यूह को, तोडा कैसे जाएगा, कौन तोड़ेगा उसे . . . . . . ही-मेन जैसे काल्पनिक केरेक्टर केवल सिनेमाघरों के परदे में ही होते हैं. भारत उदय के लक्ष्य को लेकर हाजारों-लाखों लोग एक साथ रोज दैनिक साधना करते हैं. ये स्वयमसेवक जिस स्थान पर दैनिक, सहर्ष, स्वप्रेरित  एकत्रित होकर सभी की उन्नति के लिए अभ्यास करते हैं उसे ही शाखा कहते हैं. और इसके संचालक संगठन को "राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ" के नाम से विश्व जानता है.


संघे शक्ति कलियुगे
संघे शक्ति कलियुगे 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ माँ भारती को परम वैभवशाली पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित है. और प्राण-प्राण से कार्यरत भी है. आइये मिलकर नये भारत के निर्माण में सहयोगी बने.

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7/23/2020

Journalist Vikram Joshi Murder Case Vijay Nagar Ghaziabad

Journalist Vikram Joshi का Murder Ghaziabad के Vijay Nagar इलाके में केवल इसलिए कर दिया गया क्योकि वह बदमाशों को अपनी भांजी को छेड़ने से रोकता था और उनके खिलाफ उसने पुलिस में कम्प्लेन कर रखी थी.

Journalist Vikram Joshi Murder Case Vijay Nagar Ghaziabad
Journalist Vikram Joshi

Journalist Vikram Joshi Murder Case Vijay Nagar Ghaziabad


पत्रकार विक्रम जोशी हत्याकांड एक ऐसा हत्याकांड है जिसकी कल्पना तक कर पाना कठिन है. 
क्या एक व्यक्ति की हत्या केवल इस बात के लिए हो सकती है की वह समाज के एक स्तम्भ, पत्रकारिता से जुड़ा हो ?
क्या एक व्यक्ति की हत्या केवल इसलिए भी हो सकती है कि वह, अपने परिवार की बहन बेटियों की हिफाजत करना चाहता है ? क्या एक व्यक्ति की हत्या इस लिए भी हो सकती है कि वह, एक जागरूक नागरिक के अपने कर्तव्यों का पालन करने को तत्पर रहता है ?

ऐसे कई सारे प्रश्न आज वातावरण में तैर रहें हैं, जो चिल्ला-चिल्ला कर प्रश्न पूछ रहें है कि, एक महिला को उसकी सुरक्षा की गारंटी देना, मौत का कारण कैसे हो सकता है ? जब अपने भी अपनों की रक्षा नहीं कर पाएंगे तो फिर कौन किससे सुरक्षा की गारंटी मांगेगा और कौन किसको, किसके भरौसे से ये गारंटी दे पायेगा.

सामाजिक सुरक्षा का ताना बना :- 

प्राचीन समय से ही मनुष्य के जीवन में कुछ ना कुछ मान-मर्यादा के पारिवारिक, सामाजिक और प्रशाशनिक मान दण्ड निर्धारित किये गये थे. ऐसी व्यवस्थाएँ जीवन को केवल निर्बाध चलाने के लिए ही नहीं की गयी थी अपितु सामाजिक स्तर पर ऐसे अनेकों चेक व बैलेंस हर स्तर पर लगाये गए थे, ताकि मनुष्य का चंचल मन निरंकुस ना हो. वह किसी भी स्थिति में इतना ना गिरे की वह. . . . . किसी की हत्या ही कर दे. राम-राम-राम आज ऐसा क्यों हो रहा है की सारी व्यवस्थाएँ . . . . . तार-तार होकर छिन्न-भिन्न सी प्रतीत हो रहीं हैं.
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7/19/2020

Ram Mandir ka Nirmaan का शुभारंभ करेंगे PM मोदी जी

Ram Mandir ka Nirmaan का शुभारंभ करेंगे PM मोदी जी, लगभग 500 वर्षों की तपश्या के पुन्य का फल प्राप्त होने में अब कोई विलम्ब नहीं.  जय श्रीराम.

Bhavy Ram Mandir
प्रभु श्रीराम जी का मंदिर 

Ram Mandir ka Nirmaan का शुभारंभ करेंगे PM मोदी जी 


आंखे बंद करूँ या खोलूं, मुझको दर्शन दे देना .
मुझको दर्शन दे देना, प्रभु मुझे दर्शन डे देना.

आंखे बंद करूँ या खोलूं, मुझको दर्शन दे देना .

जय श्री राम


श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन, हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि, नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल, चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक, चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर, शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो, वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील, स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय, सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि, मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

जानी गौरी अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम, अङ्ग फरकन लगे।

गोस्वामी तुलसीदास रचित प्रभु श्रीराम वंदना 



आज मन बहुत प्रसन्न है ईश्वर का शासन बड़ा अद्भुत है. उसकी लीला उसकी माया का कोई आरपार नहीं जान सकता. कितनी विचित्र घटना है, की सनातन धर्म का पालन करने वाले देश में प्रभु श्रीराम 500 वर्षों तक बेघर द्वार रहे . . . . . . !!!

भविष्य में आज से सेकड़ों वर्षों बाद जब जब प्रभु नाम पर चर्चा होगी तो इन बीते वर्षों को भी प्रभु श्री राम के बेघर-बार वास के रूप में याद किया जायेगा.

मन व्यथित हो जाता है . . . . . . . ये सोच करके, . . . . . . कि ये उसी भारतवर्ष के इतिहास का कालखंड है जहाँ ईश्वर को 500 वर्ष का घर निकाला रहा. . . . . . . !!!

प्रश्नों की अनंत श्रृंखला मष्तिष्क में उमड़ -घुमड़ने लगती है. . . . . हे मर्यादा की मूर्ति . . . . . क्यों ऐसा आदर्श स्थापित किया . . . . . जिसने जीते जी 14 वर्ष का बनवास कराया और युगों युगों बाद भी 500 वर्षों का "बेघरवास "  करवाया.

धन्य है प्रभु आपकी लीला . . . . . हजारों-हजारों करके लाखों लोग 500 वर्षों तक संघर्ष करते रहे तब जाकर. . . . . . . अब वह शुभ घडी आने वाली है जब . . . . . आपके भवन रूपी मंदिर का शिलान्यास, आपके दिव्य सेवक नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के कर कमलों से होगा.

पूरी त्रिलोकी उस पुन्य घडी का बेसब्री से इन्तजार कर रही है. . . . . . जय श्रीराम.

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7/15/2020

Power of Prayer ईश्वर की भक्ति की शक्ति


यह प्रेरणादायक घटना Power of Prayer बहुत समय पुरानी है. यह ईश्वर की भक्ति की, शक्ति का, ये एक ऐसा अनुपम उदाहरण है, जिसे पढकर, व्यक्ति का सर कृतज्ञता से, उस ईश्वरीय सत्ता के सम्मुख नतमस्तक हो जाता है.

Power of Prayer
ईश्वर की भक्ति की शक्ति

Power of Prayer ईश्वर की भक्ति की शक्ति


घटना इस प्रकार से है की एक दिन एक व्यक्ति, जिसे उसकी जीवन भर की सेवाओं के लिए सम्मानित किया जाने वाला था, कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए घर से निकला, एअरपोर्ट पहुचकर गाड़ी से उतरा . . . . . और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट में घुसा.  उसे जिस कार्यकर्म मे पहुंचना था, वहां के लिए जाने वाला जहाज बस उड़ने के लिए तैयार ही था. 

यह कार्यक्रम खास तौर से उन्हीं सज्जन के लिए आयोजित किया गया था. उन्होंने फटाफट बोर्डिंग पास लिया, वह अपनी सीट पर बैठे और जहाज़ मंजिल की ओर उड़ चला . . . . . निर्धारित मार्ग से उड़ता हुआ जहाज अपने गंतव्य के नजदीक ही उड़ा था, कि तभी पायलेट ने घोषणा करी की, तूफानी बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है . . . . . इसलिए हम पास के एयरपोर्ट पर उतरने के लिए विवस हैं. . . . !!!


आनन फानन में जहाज़ लेंड हुआ. वह व्यक्ति फटाफट पायलेट व उसकी टीम के पास पंहुचा और शिकायत करने लगा कि . . . . उसका एक-एक मिनट क़ीमती है. और उसे आज होने वाल इस कार्यकर्म में उसका पहुँचना बहुत ज़रूरी है. तभी पास खड़े दूसरे अन्य यात्रीयों ने उसे पहचान लिया.

उन्होंने डॉ विश्वास को बताया की आप जहां पहुंचना चाहते हैं वहां तो आप यहाँ से टैक्सी द्वारा केवल तीन घंटे मे ही पहुंच सकते हैं. तब डॉ विश्वास को चैन आया. उन्होंने सहयात्रियों का  धन्यवाद किया और वे टेक्सी लेकर बचे हुये सफर के लिए निकल पडे.

लेकिन ये क्या थोड़ी ही देर में आंधी, तूफान, बिजली, बारिश ने गाड़ी का चलना मुश्किल कर दिया, फिर भी ड्राइवर हिम्मत के सांथ गाडी चलता रहा. . . . . . तभी अचानक ड्राइवर को आभास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है. 

ना उम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखाई दिया. इस भयंकर तूफान में बचने के लिए वह गाड़ी से नीचे उतरा और घर का दरवाज़ा खटखटाया. तभी आवाज़ आई की . . . जो कोई भी है अंदर आ जाए, दरवाज़ा खुला है. 

भीतर एक बुढ़िया आसन बिछाए श्रीमद भगवद् गीता पढ़ रही थी. उसने कहा मांजी अगर आपकी आज्ञा हो तो क्या मैं आपके फोन का उपयोग कर सकता हूँ. 

बुढ़िया मुस्कुराई और बोली. . . . बेटा कौन सा फोन ??  यहां ना तो बिजली है और ना ही फोन. . . . लेकिन तुम बैठो. . . . सामने चरणामृत है. उसे पी लो. . . . रास्ते की थकान दूर हो जायेगी और खाने के लिए भी कुछ ना कुछ फल भी मिल जायेंगें . . . खा लो, ताकि आगे यात्रा के लिए कुछ शक्ति आ जाये.

डाक्टर विश्वास ने बुढ़िया का धन्यवाद किया और चरणामृत पीने लगा . . . . बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी. उसके पास ही उसकी नज़र पड़ी की एक बच्चा कंबल मे लिपटा पड़ा था. जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला देती थी. 

बुढ़िया की पूजा पूरी हुई तो उसने कहा . . . . मां जी ! आपके स्वभाव और व्यवहार ने मुझ पर जादू का सा असर कर दिया है . . . . आप मेरे लिए भी प्रार्थना कर दीजिए. . . . यह मौसम साफ हो जाये मुझे उम्मीद है आपकी प्रार्थनायें अवश्य स्वीकार होती होंगी.

बुढ़िया बोली. . . . . नही बेटा ऐसी कोई बात नही . . . तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा करना ईश्वर का आदेश है. मैने तुम्हारे लिए भी प्रार्थना की है. परमात्मा की कृपा है . . . . उसने मेरी हर प्रार्थना सुनी है . . . बस, एक प्रार्थना और मै उससे माँग रही हूँ, शायद जब वह चाहेगा उसे भी स्वीकार कर लेगा . . . !!!  

डाक्टर बोला . . . वह कौन सी प्रार्थना है ??


ईश्वर की आराधना में मग्न भक्त
ईश्वर की भक्ति 

बुढ़िया बोली... ये जो 2 साल का बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा पड़ा है,  वह मेरा पोता है, ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप, इस बुढ़ापे में इसकी ज़िम्मेदारी मुझ पर है, डाक्टर कहते हैं . . . . इसे कोई खतरनाक रोग है, जिसका वो उपचार नहीं कर सकते. 

कहते हैं की एक ही नामवर डाक्टर है, क्या नाम बताया था उसका ! हां "डॉ विश्वास" . . . . वही इसका ऑपरेशन कर सकता है, लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस डॉ तक पहुंच सकती हूं? लेकर जाऊं भी तो पता नही वह देखने को राज़ी भी हो या नही

बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि वह मेरी इस मुश्किल को आसान कर दे..!!

डाक्टर की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही है . . . वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला ! 
माई . . . आपकी प्रार्थना ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया, आसमान पर बिजलियां कौधवा दीं, मुझे रस्ता भुलवा दिया, ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं, हे भगवान ! मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा . . . . कि वो एक प्रार्थना स्वीकार करके अपने भक्तों के लिए इस तरह भी सहयता कर सकता है . . . . !!!

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7/07/2020

हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की traditional life style कैसी थी

हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की परंपरागत जीवन शैली Traditional life style 

सब्जी की खेती, ग्रामीण जीवन शैली
गाँव में सब्जी की पैदावार 
बहुत पुरानी बात नहीं है जीवन में धन का प्रमुख स्थान तो था ही किन्तु धन के लिए लूट मार जैसी स्थितियां नहीं थी. परंपरागत जीवन इतना सरल था की थोड़े से धन में भी गुजर बसर हो जाती थी. बच्चे घर की टाटी पे चढ़ के रसोई के दो तीन महीने का इंतज़ाम आसानी से कर देते थे। कभी खपरैल की छत पे चढ़ी लौकी महीना भर निकाल देती थी। कभी बैसाख में दाल और भात से बनाई सूखी कोहडौड़ी सावन भादो की सब्जी का खर्चा निकाल देती थी‌। अनाज घर भर के खाने के लिए पर्याप्त हो ही जाता था.

ग्रामीण जीवन की खुशहाली :-


उन दिनों सब्जी पर होने वाले खर्चे का पता  तक नहीं चलता था। देशी टमाटर और मूली जाड़े के सीजन में बेहिसाब पैदा होती थी और  खिचड़ी के आते आते उनकी इज्जत घर में घर जमाई जैसी हो जाती थी। तब जीडीपी का अंकगणितीय करिश्मा नहीं था। ये सब्जियाँ सर्वसुलभ और हर रसोई का हिस्सा थीं। लोहे की कढ़ाई में किसी के घर रसेदार सब्जी पके, तो गाँव के दूर दूर तक के घरों में इसकी खुशबू जाती थी। शाम को रेडियो पे चौपाल और आकाशवाणी के सुलझे हुए समाचारों से दिन पूर्ण होता था। रातें बड़ी होती थीं। दूर कहीं कोई हरिया तानपुरे में कोई तान छेड़ देता तो ऐसा लगता मानों कोई सिनेमा चल गया हो । किसान लोगो में कर्ज का फैशन नहीं था।

ग्रामीण जीवन को लगी आधुनिकता की नजर :-


सदियों से ग्रामीण जीवन की खुशहाली की यही परंपरा देश व समाज की जीवन्तता का आधार थी. आधुनिक पाश्चात्य परंपरा के अंधानुकरण के बीच नई पीड़ी के बच्चे बड़े होने लगे.. बच्चियाँ भी बड़ी होने लगी। बच्चे सरकारी नौकरी पाते ही अंग्रेजी इत्र लगाने लगे। बच्चियों के पापा सरकारी दामाद में नारायण का रूप देखने लगे। किसान क्रेडिट कार्ड...... ....डिमांड और ईगो का प्रसाद बन गया। इसी बीच मूँछ बेरोजगारी का सबब बनी।

सामाजिक परिवर्तन:-


फिर एक दौर आया बिना मूछ वाले मूछमुंडे इंजीनियरों का. अब दीवाने किसान अपनी बेटियों के लिए खेत बेचने के लिए तैयार थे। बेटी गाँव से रुखसत हुई.. पापा के कानों को सुख देने वाला रेडियो साजन की टाटा स्काई वाली एलईडी के सामने फीका पड़ चुका था। अब आँगन में हरिया की बहू जो गाँव के सुखी जीवन में रची बसी थी. जो छाने व घर की दीवारों में अंगूर व तरकारी की लताएँ / बेल चढ़ाने में जीवन के कई रंग बिखेरती थी वही बिटिया पिया के ढाई बीएचके की बालकनी के गमले में कोरोटन का पौधा लगाने लगी ताकि घर की नकारात्मकता को समाप्त किया जा सके घर में खुशियाँ आ सकें और इसी जद्दोजहद में सब्जियाँ मंहँगी हो गईं। अब तो बगैर  रूपये खर्चे सब्जी तो दूर, शुद्ध हवा और पानी तक नसीब नहीं होता.

परिणाम / निष्कर्ष:-


इस लॉक डाउन पीरियड में सभी पुरानी यादें ताज़ा हो गई हैं. सच में उस समय सब्जी पर कुछ भी खर्च नहीं हो पाता था। जिसके पास नहीं होता उसका भी काम चल जाता था। दही मठ्ठे की भरमार रहती थी. सबका काम चलता था। मटर, गन्ना, गुड की सबके लिए इफरात रहती थी। इससे भी बड़ी बात तो यह थी कि जीवन में आपसी मनमुटाव रहते हुए भी एक दुसरे के प्रति अगाध प्रेम रहता था। आज की जैसी छुद्र मानसिकता दूर दूर तक नहीं दिखाई देती थी।

हाय रे ये आधुनिक शिक्षा व पश्चिम का अन्धानुकरण कहाँ तक ले आया है हमें ?? जीवन कितना क्रूर हो गया है.

आज हर आदमी एक दूसरे को शंका की निगाह से देख रहा है।

यक्ष प्रश्न यह है कि, क्या सचमुच हम विकसित हुए हैं ? या यह केवल एक छलावा भर है !!


हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की परंपरागत जीवन शैली Traditional life style ही हमें सही अर्थों में जीवनोत्कर्ष प्रेरणा Life Inspiration दे सकती है.


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